राजस्थानी लोकोक्तियां 10

काकड़ी रा चोर न मुक्क की मार। शब्दार्थ :- ककड़ी की चोरी करने वाले को,केवल मुक्के के मार की ही सज़ा। भावार्थ :- छोटे या साधारण अपराध का साधारण दंड ही दिया जाता है। करम कारी नहीं लागण दै जद के होव? भावार्थ:- भाग्य पैबन्द ही नहीं लगने दे तो क्या हो सकता है? भाग्य साथ न दे तो क्या हो सकता है? भाग्य ही साथ न दे तो प्रयत्न व्यर्थ है। (भाग्यं फलति सर्वत्र न विद्या न पौरुषम्) कदेई बड़ा दिन,कदेई बड़ी रात। शब्दार्थ :- कभी दिन बड़े होते हैं तो कभी रात बड़ी हो जाती है। भावार्थ :- 1.संसार सदा परिवर्तनशील है, समय हमेशा एक समान नहीं रहता। 2.कभी किसी एक का दांव चल जाता है तो कभी किसी दूसरे का,हर बार किसी का समय एक जैसा नहीं रह पाता है। छ दाम को छाजलो, छै टका गंठाई का। शब्दार्थ :-छदाम (सिक्के का एक मान जो छः दामों अर्थात् पुराने पैसे के चौथाई भाग के बराबर होता था ) का सूपड़ा लेकिन उसको बनवाने का दाम छह सिक्कों जितना। भावार्थ :- किसी वस्तु की वास्तविक कीमत तो कम हो,परन्तु उसको उपयोग लेने लायक बनाने की कीमत कई गुना ज्यादा लगे। बगल म छोरो, गांव़ में ढींढोरौ। शब्दार्थ :- लड़का अपने पास ही हो और लडके को ढू