कदै घी घणा,कदै मुट्ठी चणा।
शब्दार्थ :- कभी बहुत अधिक घी प्राप्त मिल गया और कभी केवल एक मुट्ठी चने ही मिले।
भावार्थ :- किसी वस्तू या परिस्तिथि की कभी बहुतायत होना और कभी अत्यंत कमी या न्यूनता होना।
न जाण,न पिछाण, हूँ लाडा की भुवा।
शब्दार्थ :- न जान, न पहचान, मैं वर की भुआ
भावार्थ :- किसी बात की गहराई को जाने बिना अपना मत रखना और उसे मनवाने की जिद्द करना।
मांग्या मिल र माल, जकांर के कमी र लाल।
शब्दार्थ :- जिनको मांगने से ही धन मिल जाता है,उनको किसी चीज़ की क्या कमी हो सकती है।
भावार्थ :-ऐसे लोग जिनको अपना गुजारा/काम ही मांग-तांग कर चलाना होता है,उनको क्या परेशानी हो सकती है ? परन्तु जिनका उद्देश्य परिश्रम से ही सफलता हांसिल करना होता है,उनको कष्ट तो सहन करना ही पड़ता है।
ठाया-ठाया न टोपली,बाकी न लंगोट।
शब्दार्थ :- कुछ चुने हुए लोगों को टोपी दी गयी परन्तु शेष लोगों को सिर्फ लंगोट ही मिली ।
भावार्थ :- कुछ विशेष चयनित लोगों का तो यथोचित सम्मान किया गया परन्तु शेष लोगों को जैसे-तैसे ही निपटा दिया गया, कुछ महत्वपूर्ण कार्यों को कर लिया परन्तु सामान्य कार्यों की उपेक्षा कर दी गयी।
ठठैरे री मिन्नी खड़के सूं थोड़ाइं डर।
शब्दार्थ :- ठठैरे ( जो की धातु की चद्दर को पीट-पीट कर बर्तन बनाता है ) के वहां रहने वाली बिल्ली खटखट करने से डरकर नहीं भागती क्योंकि वह तो सदा खटखट सुनती रहती है।
भावार्थ :- किसी कठिन माहौल में रहने-जीने वाले व्यक्ति के लिए वहां की कठिनाई आम बात होती हैं,वह उस परिस्तिथि से घबराता नहीं है।
कमाऊ पूत आव डरतो,अणकमाऊ आव लड़तो।
शब्दार्थ :- कमाने वाला बेटा तो घर में डरता हुआ प्रवेश करता है, लेकिन जो कभी नहीं कमाता वह लड़ाई झगडा करते हुए ही आता है।
भावार्थ :- परिवार में धनार्जन करने वाले व्यक्ति को हर समय अपने मान-सम्मान का ध्यान रहता है, लेकिन निखट्टू को अपनी बात मनवाने का ही ध्यान रहता है।
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