आइए जानते हैं कि 2022 में महाशिवरात्रि कब है, महाशिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन का एक महान पर्व है। दक्षिण भारतीय पञ्चाङ्ग के अनुसार, माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन महा शिवरात्रि का त्यौहार मनाया जाता है। उत्तर भारतीय पञ्चाङ्ग के अनुसार, फाल्गुन माह में आने वाली मासिक शिवरात्रि को महा शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। दोनों पञ्चाङ्ग में सिर्फ महीनों के नामकरण की परंपरा का अन्तर है, क्यूंकि दोनों ही पद्धति में शिवरात्रि एक ही दिन मनाई जाती हैं।
महाशिवरात्रि व्रत का शास्त्रोक्त नियम
महाशिवरात्रि व्रत कब मनाई जाए, इसके लिए शास्त्रों के अनुसार नियम बनाए गए हैं ।
1 चतुर्दशी पहले ही दिन निशीथव्यापिनी हो, तो उसी दिन महाशिवरात्रि मनाते हैं। रात्रि का आठवाँ मुहूर्त निशीथ काल कहलाता है। सरल शब्दों में कहें तो जब चतुर्दशी तिथि शुरू हो और रात का आठवाँ मुहूर्त चतुर्दशी तिथि में ही पड़ रहा हो, तो उसी दिन शिवरात्रि मनानी चाहिए।
2 चतुर्दशी दूसरे दिन निशीथकाल के पहले हिस्से को छुए और पहले दिन पूरे निशीथ को व्याप्त करे, तो पहले दिन ही महाशिवरात्रि का आयोजन किया जाता है।
3 उपर्युक्त दो स्थितियों को छोड़कर बाक़ी हर स्थिति में व्रत अगले दिन ही किया जाता है।
शिवरात्रि के एक दिन पहले, मतलब त्रयोदशी तिथि के दिन, भक्तों को केवल एक समय ही भोजन ग्रहण करना चाहिए। शिवरात्रि के दिन, सुबह नित्य कर्म करने के पश्चात्, भक्त गणों को पुरे दिन के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। संकल्प के दौरान, भक्तों को मन ही मन अपनी प्रतिज्ञा दोहरानी चाहिए और भगवान शिव से व्रत को निर्विघ्न रूप से पूर्ण करने हेतु आशीर्वाद मांगना चाहिए। हिन्दु धर्म में व्रत कठिन होते है, भक्तों को उन्हें पूर्ण करने हेतु श्रद्धा व विश्वास रखकर अपने आराध्य देव से उसके निर्विघ्न पूर्ण होने की कामना करनी चाहिए।
हम भगवान की पूजा करते समय भगवान से यही प्रार्थना करेंगे और यही भगवान से आशीर्वाद लेंगे कि हमारी बुद्धि को सात्विक रखें हमें कुमार्ग से हटाकर सत मार्ग की ओर ले जाए हमारा मन और बुद्धि धर्म के प्रति जागृत करें।
शिवरात्रि के दिन भक्तों को सन्ध्याकाल स्नान करने के पश्चात् ही पूजा करनी चाहिए या मन्दिर जाना चाहिए। शिव भगवान की पूजा रात्रि के समय करनी चाहिए एवं अगले दिन स्नानादि के पश्चात् अपना व्रत तोड़ना चाहिए। व्रत का पूर्ण फल प्राप्त करने हेतु, भक्तों को सूर्योदय व चतुर्दशी तिथि के अस्त होने के मध्य के समय में ही व्रत का समापन करना चाहिए। लेकिन, एक अन्य धारणा के अनुसार, व्रत के समापन का सही समय चतुर्दशी तिथि के पश्चात् का बताया गया है। दोनों ही अवधारणा परस्पर विरोधी हैं। लेकिन, ऐसा माना जाता है की, शिव पूजा और पारण (व्रत का समापन) दोनों की चतुर्दशी तिथि अस्त होने से पहले करना चाहिए।
शिवरात्रि पूजा रात्रि के समय एक बार या चार बार की जा सकती है। रात्रि के चार प्रहर होते हैं, और हर प्रहर में शिव पूजा की जा सकती है।
मिट्टी के लोटे में पानी या दूध भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के फूल, चावल आदि डालकर ‘शिवलिंग’ पर चढ़ाना चाहिए। अगर आस-पास कोई शिव मंदिर नहीं है, तो घर में ही मिट्टी से हाथ के अंगूठे के आकार का शिवलिंग बनाकर उनका पूजन किया जा सकता है।
शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप इस दिन करना चाहिए। साथ ही महाशिवरात्री के दिन रात्रि जागरण का भी विधान है।
शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार शिवरात्रि का पूजन ‘निशीथ काल’ में करना सर्वश्रेष्ठ रहता है। यह वह समय है जब भगवान शिव अपने लिंग रूप में धरती पर अवतरित हुए थे। हालाँकि भक्त रात्रि के चारों प्रहरों में से अपनी सुविधानुसार यह पूजन कर सकते हैं।
महा शिवरात्रि मुहूर्त
महा शिवरात्रि मंगलवार, 1-3-2022 को
निशिता काल पूजा समय - 12:17 ए एम से 01:00 ए एम, मार्च 02
अवधि - 00 घण्टे 43 मिनट्स
2 मार्च को शिवरात्रि पारण समय - 06:53 ए एम, मार्च 02
रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:30 पी एम से 09:36 पी एम मार्च 01
रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:36 पी एम से 12:41 ए एम, मार्च 02
रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:41 ए एम से 03:47 ए एम, मार्च 02
रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:47 ए एम से 06:53 ए एम, मार्च 02
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ - मार्च 01, 2022 को 03:16 ए एम बजे
चतुर्दशी तिथि समाप्त - मार्च 02, 2022 को 01:00 ए एम बजे
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